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लालू के 'जंगलराज' से बंगाल को डरा रही है BJP, क्या है मामला?

जानें क्यों बीजेपी 'जंगलराज' का डर दिखाकर बंगाल को बिहार पार्ट-2 बता रही है। क्या दीदी के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है?

लालू के जंगलराज से बंगाल को डरा रही है BJP, क्या है मामला?
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । बिहार में 'जंगलराज' का सफल दांव चलने के बाद, बीजेपी अब उसी फॉर्मूले को बंगाल फतह के लिए अपना रही है। पश्चिम बंगाल बीजेपी द्वारा जारी एक आक्रामक पोस्टर, जिसमें लालू यादव और ममता बनर्जी को 'दोनों एक हैं' बताया गया है, ने सियासी हलचल मचा दी है।

Young Bharat News का यह Exclusive विश्लेषण बताता है कि कैसे बीजेपी सिंडिकेट राज, कटमनी और पुलिस के राजनीतिकरण जैसे मुद्दों को उठाकर बंगाल की जनता के मन में 'जंगलराज' का डर बिठाकर, सत्ता परिवर्तन की पटकथा लिख रही है। लालू के सहारे बंगाल फतह की तैयारी क्या 'जंगलराज' का डर ममता को सत्ता से बाहर करेगा? 'जंगलराज' का जिन्न क्यों लालू यादव का चेहरा बंगाल के लिए चुनावी हथियार बना?

बिहार विजय के बाद भारतीय जनता पार्टी ने अब अपनी पूरी ताकत पश्चिम बंगाल पर लगा दी है, लेकिन इस बार उसका हथियार कोई नया नहीं, बल्कि बिहार में आजमाया हुआ एक पुराना 'दांव' है जंगलराज। यह सिर्फ एक राजनीतिक शब्द नहीं, बल्कि 90 के दशक में बिहार के लोगों द्वारा भोगा गया डर, अराजकता और कानून-व्यवस्था के पतन का एक सामूहिक अनुभव है।

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पश्चिम बंगाल बीजेपी ने सोशल मीडिया पर जो ताजा और बेहद आक्रामक पोस्टर जारी किया है, वह सिर्फ एक ग्राफिक नहीं है—यह 2026 के चुनावों के लिए बीजेपी की सोची-समझी आक्रामक रणनीति का आगाज है। इस पोस्टर में एक तरफ बिहार के पूर्व मुख्‍यमंत्री और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का आधा चेहरा है, तो दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का। ऊपर मोटे अक्षरों में लिखा है "BOTH ARE SAME" यानी "दोनों एक हैं"।

बीजेपी ने इस एक तस्वीर के जरिए बंगाल के मतदाताओं के मन में उस डर को बिठाने की कोशिश की है, जिसे बिहार ने वर्षों तक भोगा था। संदेश स्पष्ट है अगर आप ममता बनर्जी को वोट दे रहे हैं, तो आप बंगाल को उसी अराजकता की ओर धकेल रहे हैं, जिससे बिहार बड़ी मुश्किल से बाहर निकल पाया है।

बंगाल बनाम बिहार बीजेपी क्यों 'लालू राज' की पुनरावृत्ति बता रही है?

बीजेपी की रणनीति सिर्फ तुलना करने की नहीं है, बल्कि बंगाल की मौजूदा समस्याओं को सीधे तौर पर 'जंगलराज' के फ्रेम में फिट करने की है। यह नैरेटिव इतना ताकतवर है कि अगर यह जनता के मन में बैठ गया, तो यह टीएमसी की 15 साल की सत्ता की नींव हिला सकता है। बिहार में बीजेपी ने जनता को भरोसा दिलाया था कि आरजेडी की वापसी का मतलब है 'लालटेन युग और गुंडाराज की वापसी'। अब ठीक उसी फॉर्मूले को बंगाल की जमीन पर उतारा जा रहा है।

बीजेपी का आईटी सेल और रणनीतिकार ममता बनर्जी के 15 साल के शासनकाल को इसी 'जंगलराज' के चश्मे से पेश कर रहे हैं।

बीजेपी का आरोप पत्र: लालू और ममता राज में 5 खतरनाक समानताएं

बीजेपी, लालू का चेहरा आगे रखकर ममता और लालू राज की समानताएं गिना रही है, जो उसे लगता है कि आम जनता को सोचने पर मजबूर करेंगी।

सिंडिकेट राज और कटमनी कल्चर: लालू राज बिहार में उस दौर में बाहुबलियों का बोलबाला था, जो सत्ता के संरक्षण में पलते थे।

ममता राज: बीजेपी आरोप बंगाल में टीएमसी ने इसे 'सिंडिकेट राज' और 'कटमनी कल्चर' में बदल दिया है।

चुनाव बाद हुई हिंसा, विरोधियों की हत्याएं, और बमबाजी की घटनाएं बंगाल की राजनीति का चरित्र बन गई हैं। जिस तरह बिहार में मतदान केंद्रों पर कब्जा होता था, बीजेपी दावा कर रही है कि बंगाल के पंचायत चुनावों में उसी तरह मतपेटियां लूटी गईं और विरोधियों को नामांकन तक नहीं करने दिया गया।

पुलिस और प्रशासन का राजनीतिकरण: जंगलराज की निशानी पुलिस कानून की रक्षक न होकर सत्ताधारी पार्टी की कार्यकर्ता बन जाती है।

बंगाल का हाल: बीजेपी लगातार यह मुद्दा उठाती रही है कि पुलिस कमिश्नर धरने पर बैठते हैं और आईपीएस अधिकारी सत्ता के इशारे पर काम करते हैं। संदेशखाली जैसी घटनाओं में पुलिस की निष्क्रियता को बीजेपी 'लालू राज' की पुनरावृत्ति बता रही है।

भ्रष्टाचार का खुला खेल: लालू राज 'चारा घोटाले' ने लालू यादव की छवि को गहरे तक प्रभावित किया था, जो उस समय के भ्रष्टाचार का प्रतीक बना।

ममता राज बीजेपी का आरोप: बंगाल में 'शिक्षक भर्ती घोटाला', 'राशन घोटाला', 'शारदा' और 'नारदा' जैसे मामलों ने ममता सरकार की साख पर बट्टा लगाया है। पार्थ चटर्जी के घर से नोटों के पहाड़ मिलना और फिर अनुब्रत मंडल की गिरफ्तारी... ये दृश्य बिहार के चारा घोटाले की यादों को ताजा करते हैं।

परिवारवाद और उत्तराधिकार लालू राज: लालू यादव ने अपने बाद अपनी पत्नी राबड़ी देवी और फिर बेटे तेजस्वी को सत्ता सौंपी।

ममता राज बीजेपी का आरोप: बीजेपी, ममता बनर्जी पर भी अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को आगे बढ़ाने और पार्टी पर पारिवारिक नियंत्रण रखने का आरोप लगाती है। यह 'परिवारवाद' का मुद्दा बीजेपी के कोर एजेंडे में फिट बैठता है।

तुष्टिकरण की राजनीति लालू राज: 'एम-वाई' मुस्लिम-यादव समीकरण लालू की ताकत था।

ममता राज बीजेपी का आरोप: बीजेपी का आरोप है कि ममता बनर्जी ने बंगाल में भी एक विशेष वर्ग के तुष्टिकरण को अपनी सत्ता का आधार बनाया है, जिसके कारण बहुसंख्यक समाज असुरक्षित महसूस कर रहा है और राज्य की डेमोग्राफी बदल रही है।

'पाप का घड़ा' और ममता दीदी से 'हिटलर' तक का सफर


राजनीति में एंटी-इनकंबेंसी तब पैदा होती है जब जनता को लगने लगता है कि अब 'पानी सिर से ऊपर जा चुका है'। बीजेपी इसी भावना को भुना रही है।

जनता का मूड: संदेशखाली की घटनाएं, जहां महिलाओं के साथ हुए अत्याचार की खबरें सामने आईं, उसने बंगाल की छवि को गहरा धक्का दिया है। बीजेपी इसे ही 'पाप का घड़ा' भरना बता रही है।

अराजकता की निशानी: जब ईडी और सीबीआई की टीमों पर भीड़ हमले करती है जैसा कि संदेशखाली और अन्य जगहों पर देखा गया, तो यह राज्य में कानून के शासन के पतन का स्पष्ट संकेत होता है। बीजेपी जनता को यह समझाना चाहती है कि यह सामान्य राजनीतिक माहौल नहीं है, बल्कि यह वही अराजकता की स्थिति है जिससे बिहार को मुक्ति मिली थी।

छवि बदलने की कोशिश: बीजेपी अब ममता बनर्जी की छवि को 'दीदी' से बदलकर एक 'तानाशाह' के रूप में स्थापित करना चाहती है।

सोमवार को बीजेपी ने उन्हें खुलेआम 'हिटलर' कहकर भी बुलाया। पोस्टर के साथ बीजेपी बता रही है कि "हम बंगाली, ममता के 15 साल के कार्यकाल को हमेशा जंगलराज के युग के रूप में याद रखेंगे।" बीजेपी का यह आक्रामक नैरेटिव न केवल टीएमसी के वोटबैंक में सेंध लगाने की क्षमता रखता है, बल्कि उन उदासीन मतदाताओं को भी पोलिंग बूथ तक खींचने का माद्दा रखता है, जो 'जंगलराज' की वापसी के डर से किसी भी कीमत पर परिवर्तन चाहते हैं। क्या ममता के लिए मुसीबत शुरू हो चुकी है?

यह रणनीति टीएमसी के सामने एक बड़ी चुनौती पेश कर सकती है। ममता बनर्जी अब केवल अपनी सरकार के कामकाज का बचाव नहीं कर रही हैं, बल्कि उन्हें दशकों पुराने 'जंगलराज' के भूत से भी लड़ना पड़ रहा है।

अगर बीजेपी इस नैरेटिव को बंगाल के जनमानस तक गहराई से पहुंचाने में सफल रही, तो यह तय है कि ममता दीदी के लिए आने वाला चुनाव उनकी राजनीति का सबसे मुश्किल इम्तिहान साबित होगा। बंगाल को बिहार पार्ट-2 बनने से रोकने की बीजेपी की यह आक्रामक मुनादी, कोलकाता से लेकर दिल्ली तक सियासी पारा हाई कर चुकी है।

क्या बंगाल की जनता इस डर को स्वीकार करती है या ममता अपने 'खेला होबे' से इस नैरेटिव को काट पाती हैं, यह देखना दिलचस्प होगा।


Ajit Kumar Pandey

Ajit Kumar Pandey

पत्रकारिता की शुरुआत साल 1994 में हिंदुस्तान अख़बार से करने वाले अजीत कुमार पाण्डेय का मीडिया सफर तीन दशकों से भी लंबा रहा है। उन्होंने दैनिक जागरण, अमर उजाला, आज तक, ईटीवी, नवभारत टाइम्स, दैनिक हिंट और दैनिक जनवाणी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में फील्ड रिपोर्टिंग से लेकर डेस्क तक अपनी सेवाएं दीं हैं। समाचार लेखन, विश्लेषण और ग्राउंड रिपोर्टिंग में निपुणता के साथ-साथ उन्होंने समय के साथ डिजिटल और सोशल मीडिया को भी बख़ूबी अपनाया। न्यू मीडिया की तकनीकों को नजदीक से समझते हुए उन्होंने खुद को डिजिटल पत्रकारिता की मुख्यधारा में स्थापित किया। करीब 31 वर्षों से अधिक के अनुभव के साथ अजीत कुमार पाण्डेय आज भी पत्रकारिता में सक्रिय हैं और जनहित, राष्ट्रहित और समाज की सच्ची आवाज़ बनने के मिशन पर अग्रसर हैं।

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