खरमास बाद पूर्णकालिक अध्यक्ष बनेंगे नितिन नबीन! क्या है कायस्थ 'मास्टरस्ट्रोक'
क्या यह सिर्फ एक नियुक्ति है, या फिर यूपी, बिहार और बंगाल के लिए कोई बड़ा चुनावी गणित साधा जा रहा है? पढ़ें INSIDE STORY.

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । बीजेपी ने नितिन नबीन को कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर सियासी पंडितों को चौंका दिया है। ओबीसी या दलित अध्यक्ष की उम्मीदों के बीच कायस्थ जाति के नितिन नवीन की नियुक्ति ने इस वर्ग की राजनीतिक ताकत पर बहस छेड़ दी है। यूपी, बिहार और बंगाल में 3 करोड़ आबादी वाला यह समाज, जिसके बीच से देश के पहले राष्ट्रपति और पीएम आए, अब बीजेपी के इस दांव से कितना असर डालेगा, यही समझने के लिए पढ़ें कायस्थों के राजनीतिक दबदबे की पूरी इनसाइड स्टोरी।
Part 1: बीजेपी का 'नितिन नबीन' दांव से क्यों हिला सियासी समीकरण?
राजनीतिक गलियारों में पिछले कई हफ्तों से चर्चा थी कि बीजेपी अपना अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष किस जाति से चुनेगी। अधिकतर कयास पिछड़ा वर्ग OBC या दलित समुदाय के किसी बड़े चेहरे के इर्द-गिर्द घूम रहे थे, क्योंकि पार्टी की नजर आगामी चुनावों से पहले जातिगत समीकरणों को साधने पर थी। लेकिन, बीजेपी की टॉप लीडरशिप ने एक बार फिर सबको अचंभित कर दिया।
बिहार के युवा, तेजतर्रार और लगातार पांच बार विधायक रहे नितिन नबीन को पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर एक ऐसा 'मास्टरस्ट्रोक' चला गया है, जिसकी गहराई को समझने में विश्लेषकों को पसीना आ रहा है। नितिन नबीन उस कायस्थ समुदाय से आते हैं, जिसकी राष्ट्रीय स्तर पर आबादी भले ही 3 करोड़ से कुछ अधिक है यानी कुल जनसंख्या का 2 से ढाई फीसदी हो, लेकिन इसका राजनीतिक, सामाजिक और बौद्धिक प्रभाव इसकी संख्या से कहीं अधिक है।
सवाल यह नहीं है कि कायस्थ आबादी कितनी है, सवाल यह है कि बीजेपी ने इस 'साइलेंट वोटर' को क्यों छेड़ा है? क्या यह सिर्फ एक नियुक्ति है, या यूपी, बिहार और बंगाल के लिए कोई बड़ा चुनावी गणित साधा जा रहा है?
मकर संक्रांति के बाद 'पूर्ण अध्यक्ष' की कुर्सी?
बीजेपी सूत्रों के अनुसार, नितिन नबीन को फिलहाल कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है, लेकिन 14 जनवरी, यानी मकर संक्रांति के बाद उन्हें पूर्णकालिक अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। यह नियुक्ति प्रक्रिया वैसी ही है, जैसी गृह मंत्री अमित शाह के केंद्रीय मंत्रिमंडल में जाने के बाद जेपी नड्डा के लिए अपनाई गई थी। यह संकेत देता है कि नितिन नबीन की भूमिका सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि पार्टी को संगठनात्मक मजबूती देने की होगी।
Part 2: कायस्थ कौन हैं?
इतिहास से लेकर मौजूदा रसूख तक मुंशी-मुनीम से लेकर शीर्ष नेतृत्व तक का सफर कायस्थ समुदाय का इतिहास बेहद समृद्ध और प्रभावशाली रहा है। इन्हें पारंपरिक रूप से भगवान चित्रगुप्त का वंशज माना जाता है, जिन्हें कर्मों का लेखा-जोखा रखने वाला देवता मानते हैं। यह समुदाय मुख्य रूप से कलम और बुद्धि से जुड़ा रहा है।
मुगल काल के दौरान कायस्थों को लेखक, मुंशी, मुनीम और राजस्व संग्रहकर्ता के रूप में पहचान मिली। ब्रिटिश काल में ये उच्च शिक्षा और प्रशासनिक समझ के कारण लिपिकों और राजस्व अधिकारियों के पेशेवर समूह के रूप में उभरे, जिससे उन्हें समाज में एक विशिष्ट और प्रभावशाली स्थान मिला।
आजाद भारत में उच्च शिक्षा पर जोर देने के कारण, स्वतंत्रता के बाद भी यह समुदाय देश के शीर्ष प्रशासनिक और बौद्धिक पदों पर काबिज रहा। भारत के 'रत्न' जो इसी समुदाय से आए कायस्थों का योगदान सिर्फ प्रशासन तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि इन्होंने देश की नींव रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राजनीति: डॉ. राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति। लाल बहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री। सुभाष चंद्र बोस, चितरंजन दास, रासबिहारी बोस स्वतंत्रता संग्राम के निर्विवाद नायक। गणेश शंकर विद्यार्थी प्रसिद्ध पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी।
साहित्य: मुंशी प्रेमचंद्र, हरिवंशराय बच्चन।
विज्ञान: शांति स्वरूप भटनागर, जगदीश चंद्र बोस, सत्येंद्र नाथ बोस।
यह लंबी सूची दर्शाती है कि कायस्थ समुदाय हमेशा से एक शिक्षित, प्रबुद्ध और नेतृत्व क्षमता वाला वर्ग रहा है, जिसका प्रभाव उसकी संख्या से कई गुना बड़ा है।
यूपी, बिहार, बंगाल तीन राज्यों का 'कायस्थ' गणित
बीजेपी का यह फैसला मुख्य रूप से तीन बड़े चुनावी राज्यों को प्रभावित कर सकता है, जहां कायस्थों की आबादी और उनका राजनीतिक असर काफी मायने रखता है।
उत्तर प्रदेश में 2 करोड़ कायस्थों का 'लाला' फैक्टर: अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के आंकड़े बताते हैं कि यूपी में कायस्थों की आबादी 2 से 5 करोड़ के बीच है, जो प्रदेश की जनसंख्या का करीब 3 से 4 फीसदी है।
राजनीतिक प्रभाव: यूपी के 37 जिलों की 67 विधानसभा सीटों पर कायस्थों की अच्छी खासी तादाद है। इनमें से करीब 25 सीटों पर वे निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
प्रमुख क्षेत्र: कानपुर, लखनऊ, उन्नाव, आगरा, बरेली और अलीगढ़ जैसे शहरों में इनकी अच्छी संख्या है, जो बीजेपी के शहरी वोट बैंक के लिए महत्वपूर्ण हैं।
पहचान: यूपी और बिहार में कायस्थों को 'लाला' भी कहा जाता है, और ये मुख्य रूप से श्रीवास्तव, सिन्हा, माथुर और सक्सेना उपनामों से पहचाने जाते हैं। साथ ही, बनिया और आढ़ती वर्ग के रूप में भी इनकी पहचान मजबूत है।
नितिन नबीन की नियुक्ति से बीजेपी इस वर्ग के बीच एक 'अपने आदमी' का संदेश देना चाहती है। यह रणनीति से आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में कई शहरी और निर्णायक सीटों पर बीजेपी को बढ़त दिला सकती है, जहां सवर्ण वोट बैंक थोड़ा भी खिसकने का खतरा हो।
बिहार 5% आबादी, 100% संदेश: बिहार में कायस्थों की आबादी भले ही राष्ट्रीय औसत से कम, यानी महज 5 फीसदी हो, लेकिन इनकी राजनीतिक लॉबी हमेशा मजबूत रही है।
प्रतिनिधित्व: बीजेपी ने सिर्फ नितिन नबीन को ही विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया था, जो पांचवीं बार जीतकर मंत्री भी बने। यह एक तरह से कायस्थों के बीच उनके निर्विवाद नेता होने का प्रमाण है।
वर्तमान रसूख: केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और संगठन में ऋतुराज सिन्हा और संजय मयूख जैसे बड़े नेता इसी समुदाय से आते हैं।
सन्देश: इतने कम प्रतिशत आबादी से राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाना यह दर्शाता है कि बीजेपी सिर्फ वोट बैंक की संख्या पर नहीं, बल्कि प्रभावशाली नेतृत्व और वफादार वोटर पर दांव लगा रही है।
नितिन नबीन के पिता नवीन किशोर सिन्हा भी पार्टी के बड़े नेता थे, यानी यह नियुक्ति वफादारी को भी पुरस्कृत करती है।
पश्चिम बंगाल: 'घोष-बोस' का 27 लाख का वोट बैंक
पश्चिम बंगाल के आगामी विधानसभा चुनाव में कायस्थों की बड़ी भूमिका होगी।
आबादी: वेस्ट बंगाल में कायस्थों की आबादी 27 लाख से अधिक बताई जाती है।
उपलब्धियां: घोष, बोस, दत्ता और गुहा जैसे उपनामों से पहचाने जाने वाले कायस्थ बंगाल में एक संपन्न, शिक्षित और प्रभावशाली समुदाय माने जाते हैं।
चुनावी अहमियत: कोलकाता और उसके आसपास के शहरी इलाकों में इनकी संख्या उल्लेखनीय है।
बीजेपी की नजरें ममता बनर्जी के गढ़ में पैठ बनाने पर हैं, और नितिन नवीन के रूप में एक राष्ट्रीय कायस्थ चेहरा, बंगाल के कायस्थ वोटरों को टीएमसी से खींचकर बीजेपी की तरफ मोड़ने में अहम भूमिका निभा सकता है।
Part 4: बीजेपी की लंबी सोच क्या है चुनाव का 'हिडन एजेंडा'?
नितिन नबीन की नियुक्ति सिर्फ जातिगत समीकरण नहीं साधती, बल्कि यह बीजेपी की संगठनात्मक और भविष्य की रणनीति को भी उजागर करती है।
पहला एजेंडा युवा और अनुभवी नेतृत्व: नितिन नबीन युवा हैं, लेकिन पांच बार विधायक रहने का उन्हें लंबा अनुभव है। वह जमीन से जुड़े नेता माने जाते हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उनकी ऊर्जा और अनुभव का मिश्रण पार्टी संगठन को नई दिशा दे सकता है।
दूसरा एजेंडा वफादारी का इनाम: नवीन के पिता नवीन किशोर सिन्हा बीजेपी के मजबूत स्तंभ थे। यह नियुक्ति उन सभी कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए एक बड़ा संदेश है जो बरसों से पार्टी के लिए समर्पित रहे हैं—कि पार्टी वफादारी को हमेशा पुरस्कृत करती है।
तीसरा एजेंडा बौद्धिक वर्ग को संदेश: कायस्थ समाज पारंपरिक रूप से एक बौद्धिक, प्रबुद्ध और उच्च शिक्षा वाला वर्ग है। इस समुदाय के नेता को शीर्ष पर बैठाकर बीजेपी देशभर के शहरी, शिक्षित और मध्यम वर्ग को भी संदेश दे रही है कि पार्टी सिर्फ 'जाति-आधारित' राजनीति नहीं करती, बल्कि योग्यता को भी महत्व देती है।
यह वह वर्ग है जो अक्सर सोशल मीडिया पर सक्रिय होता है और जिसका प्रभाव कई अन्य वर्गों पर भी पड़ता है। नितिन नबीन की नियुक्ति सिर्फ एक 'अध्यक्ष' की नियुक्ति नहीं है यह एक 'राजनीतिक पुल' है, जो बीजेपी को यूपी, बिहार और बंगाल के शिक्षित, शहरी, प्रभावशाली और निर्णायक वोटरों से जोड़ता है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि यह 'कायस्थ मास्टरस्ट्रोक' आगामी चुनावों में कितनी बड़ी जीत की कहानी लिखता है।


