सुप्रीम आदेशः Noida के मुआवजा घोटाले की जांच दो माह में पूरी हो
गेझा तिलपता, नगला और भूड़ा गांव के अपात्र किसानों को 117 करोड़ रुपये का मुआवजा दिए जाने के मामले में SIT जांच, वरिष्ठ अधिकारियों की भूमिका की जांच के आदेश।

नोएडा/ नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। नोएडा के मुआवजा घोटाले की जांच कर रही स्पेशल जांच समिति (एसआईटी) को देश की सर्वोच्च अदालत ने दो माह में जांच पूरी करने के आदेश दिए हैं। बता दे कि विशेष कमेटी नोएडा में भूमि अधिग्रहण के बदले किसानों को मुआवजा देने में हुए घोटाले की जांच कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी से 10-15 वर्ष पहले तैनात रहे अधिकारियों (सीईओ और ओएसडी समेत अन्य) की भूमिका की भी गहन जांच के आदेश दिए हैं।
जानें सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने क्या कहा
जानकारी के मुताबिक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत और उज्जवल भुइयां और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने जांच समिति को दो माह का अतिरिक्त समय देते हुए अधिकारियों की कुंडली खंगालने के आदेश दिए हैं। अतिरिक्त सॉलिस्टर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट के सामने नोएडा प्राधिकरण का पक्ष रखा। उन्होंने कोर्ट को बताया कि जांच समिति ने जांच को लेकर स्थिति रिपोर्ट दाखिल कर दी है। उन्होंने कहा जांच पूरी करने के लिए समिति ने अतिरिक्त समय की मांग की है। इस पर सीजेआई ने कहा- समिति ने तीन माह का समय मांगा है लेकिन हम दो माह का समय दे रहे हैं, क्योंकि समिति को जांच के लिए पहले ही काफी समय दिया जा चुका है।
अधिक मुआवजा देने वाले अधिकारियों की जांच होगी
भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने कहा- हम अपने पहले आदेशों में भी साफ कर चुके हैं कि यह जांच किसानों को परेशान करने के लिए नहीं है। उन्होंने साफ किया है जांच का उद्देश्य उन अधिकारियों की मिलीभगत की जांच करना है जिन्होंने मिलीभगत कर मुआवजा के नाम पर अधिक भुगतान किया है।
जानें कहां हुई गड़बड़
गेझा तिलपता, नगला और भूड़ा गांव के अपात्र किसानों को 117 करोड़ रुपये का मुआवजा दिए जाने के मामले में विशेष जांच समिति जांच कर रही है। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जांच का दायरा बढ़ाने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में उन अधिकारियों की मिलीभगत की जांच की जाए, जिनके कार्यकाल में अधिक मुआवजा दिया गया। पिछले 15 वर्षों में नोएडा प्राधिकरण में तैनात एक दर्जन से अधिक सीईओ, एसीईओ, सीएलए और ओएसडी जांच के दायरे में आ गए हैं। बता दें कि मामले में करीब दो साल पहले एसआईटी द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट पर कोर्ट सहमत नहीं हुआ था क्योंकि रिपोर्ट में वरिष्ठ अधिकारियों की भूमिका का उल्लेख नहीं किया गया था।

