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अगर पटाखे नहीं तो यह दम घोंटने वाला ज़हर कहां से आ रहा है? जानें सच!

कौन हैं दिल्ली-NCR की खराब हवा के असली विलेन, पढ़ें— दिवाली के पटाखों के भ्रम से परे प्रदूषण की सटीक वजह!

अगर पटाखे नहीं तो यह दम घोंटने वाला ज़हर कहां से आ रहा है? जानें सच!
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । दिल्ली-एनसीआर की हवा में ज़हर क्यों घुला है? क्या सिर्फ़ पराली या दिवाली के पटाखे हैं? अगर दिवाली के पटाखे नहीं हैं विलेन, तो क्या हैं प्रदूषण के असली वजह? आधिकारिक आंकड़े चौंकाते हैं दिल्ली में 3 करोड़ से अधिक गाड़ियां, हज़ारों कंपनियां और मौसम का 'धोखा' इस प्रदूषण के असली विलेन हैं। Young Bharat News के इस खोजी Explainer में जानेंगे कि प्रदूषण की वास्तविक जड़ें कहां हैं और इसे खत्म करने का क्या है 'मास्टर प्लान'।

दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र NCR में हवा की गुणवत्ता एक बार फिर बेहद खराब श्रेणी में है। हर साल ठंड आते ही बहस शुरू हो जाती है पराली, दीवाली के पटाखे या गाड़ियां? सबसे पहले उस बड़े सवाल का जवाब जो हर किसी के मन में है क्या दिवाली के पटाखों का प्रदूषण इतने महीने बाद भी है? जवाब है बिल्कुल नहीं।

पटाखों का प्रदूषण: यह बहुत कम समय के लिए लगभग 24 से 48 घंटे हवा को प्रभावित करता है। इसके कण Particulate Matter बहुत छोटे होते हैं और हवा में घुलमिल जाते हैं या फिर नीचे बैठ जाते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, महीनों बाद भी इसका असर बने रहने का दावा वैज्ञानिक रूप से गलत है।

तो फिर, अगर पटाखे नहीं हैं तो यह दम घोंटने वाला ज़हर आ कहां से रहा है? सच्चाई बहुत कड़वी होती है, क्योंकि इसके असली 'हत्यारे' हमारे ही आस-पास मौजूद हैं।

दिल्ली NCR में 3 करोड़ से ज़्यादा वाहन सड़कों पर चलता-फिरता 'धुएं का दानव'

प्रदूषण के सबसे बड़े और लगातार जारी रहने वाले स्रोत को अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाता है।

वाहन प्रदूषण: सरकारी परिवहन विभाग के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। दिल्ली में इस वक्त 1 करोड़ 30 लाख यानि 13 मिलियन से अधिक पंजीकृत वाहन चल रहे हैं। अगर NCR के बाकी हिस्सों गुरुग्राम, नोएडा, गाजियाबाद, फ़रीदाबाद के वाहनों को भी जोड़ दिया जाए, तो यह संख्या और भी भयानक हो जाती है।

क्या आप जानते हैं? सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड CPCB और एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट TERI की रिसर्च बताती है कि दिल्ली के PM 5 प्रदूषण में वाहन प्रदूषण की हिस्सेदारी 40 फीसदी तक हो सकती है, ख़ासकर सर्दियों में जब हवा की गति कम होती है।

पुराने वाहनों का ज़हर: 15 साल से पुराने डीज़ल और 10 साल से पुराने पेट्रोल वाहनों पर प्रतिबंध होने के बावजूद, ये गाड़ियां सड़कों पर खूब घूम रही हैं, जो मानक से 10 से 20 गुना ज़्यादा ज़हरीला धुआं छोड़ती हैं।

यह वह ज़हर है जो 24 घंटे, सातों दिन हमारी सांसों में घुल रहा है और जो प्रदूषण को कभी कम नहीं होने देता।

प्रदूषण पैदा करने वाली 'ज़हरीली' कंपनियों का सच

वाहनों के बाद, दूसरा सबसे बड़ा योगदान औद्योगिक प्रदूषण और निर्माण गतिविधियों का है। दिल्ली-एनसीआर में औद्योगिक इकाइयां बड़े पैमाने पर प्रदूषण पैदा करती हैं। हालांकि, कई प्रदूषणकारी फैक्ट्रियों को बाहर स्थानांतरित किया गया है, लेकिन हज़ारों छोटी और मध्यम इकाइयां अब भी कार्यरत हैं।

ईंधन का प्रकार: कई छोटे कारखाने अब भी सस्ते और अत्यधिक प्रदूषणकारी ईंधनों जैसे फर्नेस ऑयल और पेट कोक का इस्तेमाल करते हैं, जिन पर अब प्रतिबंध लग चुका है, लेकिन चोरी-छिपे इसका इस्तेमाल खूब होता है।

CPCB डेटा: एक अनुमान के मुताबिक, दिल्ली में 1500 से अधिक ऐसी औद्योगिक इकाइयां हैं, जिन्हें CPCB ने 'रेड' या 'ऑरेंज' श्रेणी में रखा है, जो उच्च प्रदूषण क्षमता दर्शाती हैं।

निर्माण कार्य: सड़कों का निर्माण, इमारतों का टूटना और बनना एक और बड़ा स्रोत है। इस दौरान निकलने वाली धूल Dust और फ्लाई ऐश हवा को ख़राब करती है।

आंकड़ों का माइक्रो विश्लेषण: दिल्ली के प्रदूषण में विभिन्न स्रोतों की हिस्सेदारी सर्दियों के चरम पर एक अनुमानित

औसत वाहन: 25% - 40%

उद्योग: 15% - 25%

निर्माण/धूल: 10% - 20%

पराली बाहरी: 5% - 30%

मौसम और हवा की दिशा पर निर्भर

घरेलू दहन/अन्य: 10% - 15%

मौसम का 'धोखा' प्रदूषण कंट्रोल क्यों नहीं हो रहा है?

प्रदूषण के स्रोतों को नियंत्रित करने के सरकारी प्रयास होने के बावजूद, सवाल उठता है कि यह कंट्रोल क्यों नहीं हो रहा है? इसका जवाब छिपा है मौसम विज्ञान Meteorology में। सर्दियों में, दिल्ली के भौगोलिक और मौसमी हालात प्रदूषण को कैद कर लेते हैं।

शांत हवा: हवा की गति बहुत कम हो जाती है। जब हवा नहीं चलती, तो ज़हरीले कण एक ही जगह जमा होते रहते हैं और फैल नहीं पाते।

इनवर्जन लेयर: यह सबसे बड़ी मौसमी घटना है। ठंडी हवा नीचे बैठ जाती है और एक 'ढक्कन' की तरह काम करती है, जिससे धुआं और कण ऊपर नहीं जा पाते। ये ज़हरीले कण हमारी सांस लेने की सीमा में ही फंस जाते हैं।

आर्द्रता Humidity: अधिक नमी के कारण प्रदूषक कण और अधिक भारी होकर धुंध Smog बनाते हैं।

यानी, जब तक इन स्रोतों को बड़े पैमाने पर कम नहीं किया जाता है, तब तक मौसम का यह 'धोखा' दिल्ली को हर साल दम घोंटता रहेगा।

सरकार का प्लान और 'एंटी-प्रदूषण' नीतियां

केंद्र और राज्य सरकारें इस समस्या से निपटने के लिए कई योजनाएं चला रही हैं। सबसे प्रमुख है ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान GRAP। GRAP कब, क्या और क्यों? GRAP एक इमरजेंसी एक्शन प्लान है जो प्रदूषण के स्तर AQI के आधार पर अलग-अलग प्रतिबंध लगाता है।


AQI स्तर श्रेणी

आवश्यक कार्रवाई उदाहरण

Stage I Poor

कूड़ा जलाने पर रोक, प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों की सघन चेकिंग।

Stage II Very Poor

डीज़ल जेनरेटर सेट पर रोक आवश्यक सेवाओं को छोड़कर, पार्किंग शुल्क में वृद्धि।

Stage III Severe

निर्माण और तोड़फोड़ गतिविधियों पर रोक, ईंट भट्टों और कुछ उद्योगों को बंद करना।

Stage IV Severe +

स्कूलों को बंद करना, 'ऑड-ईवन' योजना लागू करना ज़रूरत पड़ने पर, ट्रकों के प्रवेश पर रोक।

सरकार के अन्य दीर्घकालिक उपाय: BS-VI मानक: नए वाहनों के लिए कड़े उत्सर्जन मानक लागू करना।

ई-वाहन प्रोत्साहन: इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी देना।

पेरिफेरल एक्सप्रेसवे: बाहरी ट्रकों को दिल्ली में प्रवेश किए बिना बाहर से निकालने के लिए एक्सप्रेसवे बनाना।

प्रदूषण टावर Smog Towers: हवा साफ करने के लिए कुछ जगहों पर टावर लगाए गए हैं, हालांकि इनकी प्रभावशीलता पर अभी भी बहस जारी है।

दिल्ली से प्रदूषण खत्म कैसे करें? यह है 'मास्टर स्ट्रोक'

सिर्फ़ प्रतिबंध लगाकर या तात्कालिक उपाय करके इस विकराल समस्या को खत्म नहीं किया जा सकता है। इसके लिए एक एकीकृत और कठोर 'मास्टर स्ट्रोक' की ज़रूरत है।

सार्वजनिक परिवहन का क्रन्तिकारी विस्तार: मेट्रो और इलेक्ट्रिक बसों के नेटवर्क को इतना मजबूत और सस्ता बनाना होगा कि लोग निजी वाहनों का उपयोग कम कर दें।

ज़्यादा कड़े उत्सर्जन मानक और कार्यान्वयन: सड़कों पर चलने वाले हर वाहन की रियल-टाइम उत्सर्जन निगरानी हो, और नियमों का उल्लंघन करने वालों पर भारी जुर्माना लगे।

दिल्ली - NCR के लिए एक नीति One NCR, One Policy

प्रदूषण किसी राज्य की सीमा नहीं पहचानता। दिल्ली, हरियाणा, यूपी, राजस्थान को मिलकर एक समान और कठोर नीति बनानी होगी।

ग्रीन एनर्जी अनिवार्य: उद्योगों को पूरी तरह से प्राकृतिक गैस या बिजली में बदलना अनिवार्य करना।

ग्रीन कवर: पूरी दिल्ली में सघन पौधरोपण अभियान चलाना, खासकर सड़क किनारे और खुली जगहों पर।

दिल्ली की हवा का ज़हर खत्म करना एक सामूहिक ज़िम्मेदारी है। जब तक हर नागरिक अपनी गाड़ी कम इस्तेमाल करने और अपने आस-पास सफ़ाई रखने की प्रतिज्ञा नहीं लेता, तब तक हर साल यह ज़हर हमारी सांसों को घोंटता रहेगा।


Ajit Kumar Pandey

Ajit Kumar Pandey

पत्रकारिता की शुरुआत साल 1994 में हिंदुस्तान अख़बार से करने वाले अजीत कुमार पाण्डेय का मीडिया सफर तीन दशकों से भी लंबा रहा है। उन्होंने दैनिक जागरण, अमर उजाला, आज तक, ईटीवी, नवभारत टाइम्स, दैनिक हिंट और दैनिक जनवाणी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में फील्ड रिपोर्टिंग से लेकर डेस्क तक अपनी सेवाएं दीं हैं। समाचार लेखन, विश्लेषण और ग्राउंड रिपोर्टिंग में निपुणता के साथ-साथ उन्होंने समय के साथ डिजिटल और सोशल मीडिया को भी बख़ूबी अपनाया। न्यू मीडिया की तकनीकों को नजदीक से समझते हुए उन्होंने खुद को डिजिटल पत्रकारिता की मुख्यधारा में स्थापित किया। करीब 31 वर्षों से अधिक के अनुभव के साथ अजीत कुमार पाण्डेय आज भी पत्रकारिता में सक्रिय हैं और जनहित, राष्ट्रहित और समाज की सच्ची आवाज़ बनने के मिशन पर अग्रसर हैं।

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