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क्या है उत्तराखंड की राजनीति का वो काला सच जिसे आप नहीं जानते?

क्या पुष्कर सिंह धामी इतिहास बदलने वाले नेता साबित होंगे? क्या वह 2027 तक अपनी कुर्सी बचा पाएंगे? क्या यह 'श्राप' है या सिस्टमैटिक फेलियर?

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । उत्तराखंड की राजनीति एक रहस्यमय पहेली है। पिछले 25 वर्षों में, यहां कोई भी नई सरकार शायद ही अपना पहला साल पूरा कर पाई हो। यह कोई संयोग नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित 'श्राप' है जिसके कारण कांग्रेस हो या बीजेपी, हर मुख्यमंत्री की कुर्सी पहले 12 से 18 महीनों में ही हिल जाती है। 11 में से 8 मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल इस अस्थिरता का गवाह है। आज हम उस मिथक से पर्दा उठाएंगे जो देवभूमि की प्रगति को रोक रहा है।

जब भी किसी राज्य का गठन होता है, तो उम्मीद की जाती है कि उसे एक स्थिर और मजबूत नेतृत्व मिलेगा। लेकिन, देवभूमि उत्तराखंड के साथ ऐसा नहीं हुआ। साल 2000 में राज्य बनने के बाद से यहां की राजनीति किसी 'थ्रिलर फिल्म' से कम नहीं रही है। 25 साल के इतिहास में, सिर्फ कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी ही एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिन्होंने अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया। बाकियों के लिए, कुर्सी की रेस एक 'शॉर्ट स्प्रिंट' बनकर रह गई।

क्या यह 'श्राप' है या सिस्टमैटिक फेलियर?

अगर आंकड़ों पर गौर करें, तो आपको एक खतरनाक पैटर्न दिखेगा। उत्तराखंड में जितनी भी सरकारें गिरी हैं, उनमें से 73 प्रतिशत सिर्फ पहले 18 महीनों के अंदर ही गिर गईं हैं।

तीरथ सिंह रावत को देखिए वो उत्तराखंड के सबसे कम समय तक रहने वाले मुख्यमंत्री रहे, सिर्फ 116 दिन तक। वजह? वह राज्यसभा सदस्य थे और 6 महीने के अंदर उपचुनाव नहीं लड़ पाए—यानी, कानूनी मजबूरी ने मुख्यमंत्री बदलवा दिया।

हरीश रावत की सरकार का नाटकीय पतन कौन भूल सकता है, जब 9 कांग्रेसी विधायक ही बीजेपी के साथ चले गए और रातों-रात सरकार गिर गई। यह बॉलीवुड के किसी क्लाइमेक्स सीन से कम नहीं था 2021 का 'चेहरा बदलो' पैटर्न जब दिल्ली से आया फ़ोन राजनीतिक अस्थिरता की यह कहानी 2021 में अपने चरम पर पहुंची।

फरवरी 2021 में, बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाया। आधिकारिक कारण 'जनता में गुस्सा' बताया गया, लेकिन असली वजह थी- दिल्ली से आया एक कड़ा निर्देश "चेहरा बदलो, वरना 2022 चुनाव हार जाओगे।"

सिर्फ 8 महीनों के अंदर, बीजेपी ने तीन मुख्यमंत्री बदले

त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत और पुष्कर सिंह धामी यह दिखाता है कि स्थानीय नेतृत्व कितना कमजोर है और दिल्ली का रिमोट कंट्रोल कितना मजबूत। यह घटना साफ तौर पर दर्शाती है कि उत्तराखंड का मुख्यमंत्री कौन होगा, इसका फैसला देहरादून नहीं, बल्कि देश की राजधानी करती है।

साइंटिफिक एनालिसिस से जानते हैं कि क्यों टूटती है पहले साल ही सरकार?

25 सालों के इस डेटा को Young Bharat News की टीम ने जब गहराई से एनालाइज़ किया तो हमें वे चार मुख्य और वैज्ञानिक कारण मिले जो बार-बार सरकारों को अस्थिर करते हैं और मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन लेते हैं।

पहला, गुटबाजी का ज़हर ठाकुर vs ब्राह्मण

45 परसेंट केस स्टडी से पता चलता है कि उत्तराखंड की राजनीति में गुटबाजी एक 'साइलेंट किलर' है।

जातीय समीकरण: ठाकुर बनाम ब्राह्मण की अदृश्य लड़ाई।

क्षेत्रीय विभाजन: गढ़वाल बनाम कुमाऊं का संघर्ष।

पार्टी के अंदर गुटबाजी: हर पार्टी में हमेशा 3-4 गुट मुख्यमंत्री बनने के लिए तैयार बैठे रहते हैं, जो मौका मिलते ही बगावत कर देते हैं।

दूसरा छोटी विधानसभा = आसान हॉर्स ट्रेडिंग

उत्तराखंड की विधानसभा में सिर्फ 70 विधायक हैं। यह संख्या हॉर्स ट्रेडिंग के लिए एक 'आदर्श' स्थिति बनाती है। अगर किसी को सरकार गिरानी हो, तो सिर्फ 5-6 विधायकों को तोड़ने की ज़रूरत होती है। देश में गोवा, मणिपुर और कर्नाटक के बाद, उत्तराखंड उन राज्यों में नंबर 1 पर है जहां कम विधायकों के चलते राजनीतिक अस्थिरता का खतरा सबसे अधिक रहता है।

तीसरा दिल्ली का रिमोट कंट्रोल: यही सबसे बड़ा और निर्णायक कारण है। 80% मुख्यमंत्री परिवर्तन दिल्ली से आए आदेश पर हुए हैं। लोकल लीडरशिप को अपनी क्षमता दिखाने का मौका ही नहीं मिलता, क्योंकि हाईकमान का फैसला अंतिम होता है।

चौथा पहला साल = टेस्टिंग पीरियड: यह एक खतरनाक पैटर्न है, जहां पहला साल मुख्यमंत्री के लिए 'परीक्षण अवधि' माना जाता है। पार्टी हाईकमान चुपचाप देखती है कि जनता नए चेहरे को पसंद कर रही है या नहीं। अगर थोड़ा भी नकारात्मक प्रतिक्रिया बैकलैश मिला, तो तुरंत चेहरा बदल दिया जाता है। उन्हें लगता है कि ऐसा करने से एंटी-इंकम्बेंसी खत्म हो जाएगी।

इतिहास बदलने वाला CM कौन? क्या धामी तोड़ेंगे 'श्राप'?

इस 25 साल के राजनीतिक अस्थिरता के अंधेरे में, अब सबकी निगाहें एक ऐसे मुख्यमंत्री पर टिकी हैं जिसने इस मिथक को चुनौती दी है। पुष्कर सिंह धामी की कहानी सबसे अलग है। वह 2021 में आए। वह 2022 में विधानसभा चुनाव में पार्टी को दोबारा जीत दिलाकर खुद अपनी सीट हारने के बावजूद मुख्यमंत्री बने। उन्होंने यूनिफॉर्म सिविल कोड UCC लागू करने जैसा बड़ा काम किया। 55000 से अधिक सरकारी नौकरियां देने का वादा पूरा किया। और सबसे महत्वपूर्ण, अभी तक उनके खिलाफ कोई बड़ा आंतरिक रिबेलियन नहीं हुआ है।

क्या धामी उत्तराखंड के 'आयरन मैन' बन चुके हैं? सवाल यह है कि क्या पुष्कर सिंह धामी वह इतिहास बदलने वाले नेता साबित होंगे? क्या वह 2027 तक अपनी कुर्सी बचा पाएंगे?

अगर धामी 2027 तक मुख्यमंत्री बने रहते हैं, तो वह नारायण दत्त तिवारी के बाद ऐसा करने वाले दूसरे मुख्यमंत्री होंगे, लेकिन इस दौर की राजनीति को देखते हुए, वह यकीनन उत्तराखंड के इतिहास के सबसे शक्तिशाली और स्थिर CM बन पाएंगे यह बड़ा सवाल अभी कायम है। यह देवभूमि की राजनीतिक परिपक्वता का एक नया अध्याय होगा।

उत्तराखंड को देवभूमि, सुंदरता और शांत संस्कृति का राज्य कहा जाता है, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता ने इसकी पहचान को धूमिल किया है। 25 साल, 11 मुख्यमंत्री, करोड़ों के विकास के सपने—और हर बार ये सपने पहले साल ही टूट जाते हैं।

अब यह देखना है कि क्या वर्तमान नेतृत्व इस 'सिस्टमैटिक श्राप' को हमेशा के लिए तोड़ पाएगा।


Ajit Kumar Pandey

Ajit Kumar Pandey

पत्रकारिता की शुरुआत साल 1994 में हिंदुस्तान अख़बार से करने वाले अजीत कुमार पाण्डेय का मीडिया सफर तीन दशकों से भी लंबा रहा है। उन्होंने दैनिक जागरण, अमर उजाला, आज तक, ईटीवी, नवभारत टाइम्स, दैनिक हिंट और दैनिक जनवाणी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में फील्ड रिपोर्टिंग से लेकर डेस्क तक अपनी सेवाएं दीं हैं। समाचार लेखन, विश्लेषण और ग्राउंड रिपोर्टिंग में निपुणता के साथ-साथ उन्होंने समय के साथ डिजिटल और सोशल मीडिया को भी बख़ूबी अपनाया। न्यू मीडिया की तकनीकों को नजदीक से समझते हुए उन्होंने खुद को डिजिटल पत्रकारिता की मुख्यधारा में स्थापित किया। करीब 31 वर्षों से अधिक के अनुभव के साथ अजीत कुमार पाण्डेय आज भी पत्रकारिता में सक्रिय हैं और जनहित, राष्ट्रहित और समाज की सच्ची आवाज़ बनने के मिशन पर अग्रसर हैं।

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