ममता के गढ़ में 'वोटर भूकंप' क्या SIR बदल देगा चुनावी गणित?
क्या पश्चिम बंगाल की राजनीति अब बदलने जा रही है?, 'वोटर डिलीट' करने से किस पार्टी पर होगा ज्यादा असर?

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । पश्चिम बंगाल की राजनीति में बड़ा भूचाल चुनाव आयोग के नए डेटा के मुताबिक, सीएम ममता बनर्जी के भवानीपुर निर्वाचन क्षेत्र में शुभेंदु अधिकारी के नंदीग्राम से लगभग 4 गुना ज़्यादा वोटर्स के नाम कटे हैं। भवानीपुर से 44787 नाम हटने से सियासी समीकरण पर सवाल खड़े हो गए हैं। क्या यह 'स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन' चुनावी गणित बदल देगा? पश्चिम बंगाल 'वोटर डिलीट' ने किया गेम चेंज क्या भवानीपुर में कम हो रहा दीदी का असर?
पश्चिम बंगाल की राजनीति में हमेशा कुछ न कुछ ऐसा होता है जो सीधे चुनावी समीकरण को हिलाकर रख देता है। इस बार केंद्र में है चुनाव आयोग EC का हालिया 'वोटर डिलीट' डेटा। शुक्रवार को जारी हुए इस डेटा ने कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं, खासकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के गढ़ भवानीपुर और विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी के निर्वाचन क्षेत्र नंदीग्राम को लेकर जो आंकड़े सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भवानीपुर निर्वाचन क्षेत्र में 44787 वोटर्स के नाम हटाए गए हैं। यह संख्या शुभेंदु अधिकारी के नंदीग्राम से हटाए गए 10599 वोटर्स की संख्या से लगभग चार गुना ज़्यादा हैं।
सियासी हलचल भवानीपुर Vs नंदीग्राम, कौन ज़्यादा प्रभावित?
भवानीपुर, जिसे अक्सर सीएम ममता बनर्जी का अजेय किला माना जाता है, वहां से इतने बड़े पैमाने पर वोटर्स का हटना एक गंभीर राजनीतिक बहस छेड़ रहा है।
भवानीपुर ममता का गढ़: जनवरी 2025 में लिस्टेड कुल 206295 वोटरों में से 44787 नाम डिलीट किए गए।
नंदीग्राम शुभेंदु का गढ़: कुल 278212 वोटरों में से 10599 नाम हटाए गए।सवाल क्या: यह 'वोटर डिलीट' प्रक्रिया जिसे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन SIR कहा जाता है, वाकई निष्पक्ष है? या क्या यह किसी खास पैटर्न की ओर इशारा करता है?
यह ध्यान देने योग्य है कि नंदीग्राम वह क्षेत्र है जो 2011 में TMC को सत्ता में लाने वाले भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन का केंद्र था। वहीं, भवानीपुर दक्षिण कोलकाता का वो इलाका है, जहां से ममता बनर्जी ने अपनी राजनीतिक पकड़ को हमेशा मज़बूत रखा है। क्या ये आकंड़े बदल देंगे चुनावी गणित?
एक्सपर्ट की राय: जब इतने बड़े पैमाने पर वोटर लिस्ट में बदलाव होता है, तो चुनावी रणनीति भी बदल जाती है।
विश्लेषकों का मानना है कि भले ही ये नाम मृत्यु, पता बदलने या डुप्लीकेट एंट्री जैसी 'स्टैंडर्ड कैटेगरी' के तहत हटाए गए हों, लेकिन संख्या का बड़ा अंतर मायने रखता है। जिन सीटों पर जीत का अंतर कम होता है, वहां यह संख्या निर्णायक साबित हो सकती है।
भवानीपुर और नंदीग्राम, दोनों ही सीटें हाई-प्रोफाइल हैं और यहां का हर एक वोट सियासी तापमान बढ़ा सकता है।
अगले सप्ताह की ड्राफ्ट: वोटर लिस्ट से पहले यह डेटा एक नए राजनीतिक अध्याय की शुरुआत कर रहा है।
महत्वपूर्ण बात: चुनाव आयोग ने ज़ोर देकर कहा है कि यह प्रक्रिया पूरे राज्य में एक समान नियमों के तहत की गई है। लेकिन राजनीतिक दल इस पर अपनी-अपनी व्याख्या दे रहे हैं।
भवानीपुर ही नहीं, उत्तरी कोलकाता में 'मेगा डिलीशन'
अगर आप सोचते हैं कि भवानीपुर में सबसे ज़्यादा नाम हटे हैं, तो आप गलत हैं। राज्य के 294 विधानसभा क्षेत्रों के डेटा ने एक और चौंकाने वाला नाम सामने रखा है।
उत्तरी कोलकाता का चौरंगी: चौरंगी जहां सबसे ज़्यादा नाम कटे
TMC विधायक नयना बंद्योपाध्याय द्वारा प्रतिनिधित्व किए जाने वाले चौरंगी में 74553 वोटरों के नाम वोटर लिस्ट से हटाए गए हैं। याद रहे, नयना बंद्योपाध्याय ने 2021 में यह सीट 44000 से ज़्यादा वोटों के अंतर से जीती थीं। इतनी बड़ी संख्या में नामों का हटना यह बताता है कि SIR प्रक्रिया कितनी व्यापक रही है।
कोलकाता पोर्ट और सिलीगुड़ी का हाल
TMC के वरिष्ठ मंत्री और कोलकाता के मेयर फिरहाद हकीम के निर्वाचन क्षेत्र कोलकाता पोर्ट से भी 63730 नाम हटाए गए हैं। हकीम ने यह सीट लगभग 70000 वोटों के बड़े अंतर से जीती थी। दूसरी ओर, उत्तरी बंगाल में BJP के लिए सबसे बड़ी सफलताओं में से एक रही सिलीगुड़ी सीट का प्रतिनिधित्व शंकर घोष करते हैं। यहां 31181 नाम हटाए गए। शंकर घोष, जो पहले CPIM नेता थे और 2021 चुनावों से पहले BJP में शामिल हुए, उन्होंने 35000 से ज़्यादा वोटों के अंतर से यह सीट जीती थी।
इन सभी हाई-प्रोफाइल सीटों पर बड़ी संख्या में नाम हटने से एक बात स्पष्ट है कि वोटर लिस्ट शुद्धिकरण एक व्यापक और गहरी प्रक्रिया रही है। यह प्रक्रिया टीएमसी के गढ़ भवानीपुर, कोलकाता पोर्ट और बीजेपी की बड़ी जीत वाली सीट सिलीगुड़ी दोनों को समान रूप से प्रभावित करती दिख रही है।
वोटर लिस्ट से नाम क्यों हटाए जाते हैं? चुनाव आयोग नामों को हटाने के लिए मुख्य रूप से चार स्टैंडर्ड कैटेगरी का उपयोग करता है।
- मृत्यु Demise: वोटर की मृत्यु होने पर।
- जगह बदलना Shifting: वोटर का पता बदलने या किसी और निर्वाचन क्षेत्र में चले जाने पर।
- न मिल पाना Not Found: मतदाता के पते पर बार-बार प्रयास के बाद भी संपर्क न हो पाने पर।
- डुप्लीकेट एंट्री Duplicate: एक ही व्यक्ति का नाम एक से अधिक जगह या बार लिस्ट में होने पर।
अधिकारियों का कहना है कि यह पूरी कवायद वोटर लिस्ट को त्रुटि-मुक्त और अद्यतन Up-to-date बनाने के लिए की गई है।
क्या है इस 'वोटर डिलीट' का असली मतलब?
पश्चिम बंगाल में वोटर डिलीट के इन बड़े आंकड़ों ने आगामी चुनावों से पहले राजनीतिक दलों को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है। भवानीपुर और चौरंगी जैसे महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्रों से हज़ारों नामों का कटना दिखाता है कि भविष्य का चुनावी मुकाबला और भी ज़्यादा अप्रत्याशित Unpredictable हो सकता है। यह डेटा सभी दलों को याद दिलाता है कि वोटर लिस्ट में किसी भी बड़े बदलाव को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। अब देखना यह है कि ये दल इन आंकड़ों का इस्तेमाल अपनी चुनावी रैलियों और रणनीति में कैसे करते हैं।


