ट्रंप का 'C-5' प्लान, क्या है US की नई वर्ल्ड ऑर्डर स्ट्रैटेजी?
अमेरिका क्यों बदल रहा है नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रैटजी?, दुनियाभर के पांच शक्तिशाली देशों के समूह में भारत कहां होगा?

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । अमेरिका की नई नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रैटजी NSS के लीक ड्राफ्ट ने वैश्विक कूटनीति में तूफान ला दिया है। इस ड्राफ्ट में चीन, रूस और भारत जैसे देशों को मिलाकर 'C-5' नाम के एक बिल्कुल नए पावर ग्रुप को बनाने का हैरान कर देने वाला प्रस्ताव है, जो दुनिया की पांच सबसे बड़ी जनसंख्या वाले शक्तिशाली राष्ट्रों का मंच होगा।
अगर यह योजना लागू होती है, तो लोकतांत्रिक देशों के शक्तिशाली समूह G-7 का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है, क्योंकि ट्रंप प्रशासन का लक्ष्य अमेरिकी वर्चस्व के बजाय 'शक्ति संतुलन' बनाना है। यह नई स्ट्रैटजी 'अमेरिका फर्स्ट' से 'मेक यूरोप ग्रेट अगेन' तक जाती है, जिसमें वैश्विक शांति के लिए नए "रीजनल चैंपियंस" को बढ़ावा देने की बात कही गई है। C-5 वो ग्रुप जो G7 G20 जैसा नहीं, क्यों बदल रहा है अमेरिका का नजरिया?
डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाले अमेरिका की नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति NSS का लीक ड्राफ्ट इस बात का स्पष्ट संकेत है कि वॉशिंगटन अब पुरानी वैश्विक व्यवस्था से थक चुका है। शीत युद्ध के बाद अमेरिकी नीति-निर्माताओं ने एक ऐसी दुनिया की कल्पना की थी, जिस पर उसका स्थायी दबदबा हो। लेकिन NSS दस्तावेज़ में साफ तौर पर कहा गया है "अमेरिकी वर्चस्व बनाए रखना ना तो संभव है और ना ही ऐसा करना समझदारी है।" यह लाइन अपने आप में एक कूटनीतिक भूकंप है। इसी नई सोच के गर्भ से 'C-5' समूह का प्रस्ताव निकला है, जिसने दुनिया भर के रक्षा विशेषज्ञों का ध्यान खींचा है। C-5 कौन?
यह दुनिया की पांच सबसे बड़ी जनसंख्या वाले शक्तिशाली देशों का एक अनूठा समूह होगा अमेरिका, चीन, रूस, भारत और जापान। आधार क्या? G-7 आर्थिक या लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित है, जबकि C-5 सिर्फ 'वैश्विक शक्ति संतुलन' और 'जनसंख्या/शक्ति' के मानदंडों पर टिका है। मकसद क्या? C-5 नियमित शिखर सम्मेलन करेगा और प्रमुख भू-राजनीतिक Geopolitical मुद्दों, जैसे कि इजरायल-सऊदी अरब संबंधों को सामान्य बनाने पर, एक साथ समाधान खोजने की कोशिश करेगा।
यह प्रस्ताव इस बात को दर्शाता है कि ट्रंप प्रशासन, ब्रिक्स BRICS और जी-20 G7 के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए, अब शक्ति को सिर्फ 'लोकतांत्रिक क्लबों' तक सीमित नहीं रखना चाहता, बल्कि एक ऐसा मंच चाहता है जहां दुनिया के असली पावर सेंटर्स एक साथ बैठकर बात करें।
नया मंत्र: अब अमेरिका को किसी दूसरे देश के अंदरूनी मामलों में तभी हस्तक्षेप करना चाहिए, जब उस देश से अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी को डायरेक्ट खतरा हो। क्या G7 का खेल खत्म? क्यों ट्रंप रूस को G8 में वापस लाना चाहते हैं?
C-5 की नींव वास्तव में G-7 के लिए सबसे बड़ा खतरा है। G-7 अमेरिका के नेतृत्व में चलने वाला लोकतांत्रिक देशों का समूह है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था और कूटनीति को प्रभावित करने का दावा करता है। लेकिन रूस को 2014 में यूक्रेन के क्रीमिया पर हमले के बाद G-8 से बाहर कर दिया गया था, जिसे ट्रंप हमेशा से गलत मानते आए हैं। C-5 का प्रस्ताव यह दर्शाता है कि ट्रंप वैश्विक समस्याओं को सुलझाने के लिए वैचारिक मतभेदों Ideological Differences को किनारे रखना चाहते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर C-5 का गठन हो जाता है, जिसमें भारत और चीन जैसी तेजी से उभरती हुई और रूस जैसी सैन्य शक्ति शामिल होंगीं, तो G-7 जिसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और यूके शामिल हैं का वैश्विक प्रभाव लगभग शून्य हो जाएगा। यह एक तरह से अमेरिका द्वारा अपने पुराने 'लोकतांत्रिक सहयोगियों' को पीछे छोड़कर 'नए शक्ति समीकरण' बनाने का प्रयास है।
यूरोप पर ट्रंप का 'Make Europe Great Again' दांव
सार्वजनिक NSS दस्तावेज़ में यूरोप से अमेरिकी सुरक्षा हटाने की बात कही गई थी, लेकिन जो बातें लीक हुई हैं, उनमें एक बिल्कुल अलग रणनीति है 'मेक यूरोप ग्रेट अगेन'। ट्रंप प्रशासन मानता है कि यूरोप "आव्रजन नीति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सेंसरशिप" के कारण "सभ्यतागत संकट" Civilizational Crisis का सामना कर रहा है। इसलिए, वॉशिंगटन को यूरोप में ऑस्ट्रिया, हंगरी, इटली और पोलैंड जैसे रूढ़िवादी विचारधारा वाले देशों के साथ गहरे संबंध बनाने चाहिए। यह कदम यूरोप के भविष्य पर अमेरिका का वैचारिक और रणनीतिक दबदबा बढ़ाने की कोशिश है, जिसमें वह अपने विचार से मेल खाने वाले 'रीजनल चैंपियंस' को बढ़ावा देना चाहता है।
NSS में कहा गया है कि वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए अमेरिका को "रीजनल चैंपियंस" के साथ पार्टनरशिप करनी चाहिए।
उद्देश्य: संकट को कम करना और चीन-रूस को अमेरिकी लीडरशिप की जगह लेने से रोकना।
रणनीति: अपने हितों की रक्षा के लिए क्षेत्रीय शक्तियों को बढ़ावा देना।
यह NSS ड्राफ्ट एक तरह से 'ट्रंप डॉक्ट्रिन' का ब्लूप्रिंट है, जो न केवल अमेरिकी विदेश नीति में, बल्कि पूरी दुनिया के शक्ति समीकरणों में बड़ा बदलाव ला सकता है। वॉशिंगटन अब 'पुलिसिंग' से हटकर 'पावर ब्रोकर' की भूमिका निभाना चाहता है, जिसमें C-5 एक मजबूत टूल बन सकता है।
डोनाल्ड ट्रंप की नई NSS में C-5 ग्रुप बनाने का चौंकाने वाला प्रस्ताव है, जिसमें भारत, चीन, रूस, अमेरिका और जापान होंगे। यह कदम G7 के लोकतांत्रिक वर्चस्व को खत्म कर सकता है और एक नए वैश्विक शक्ति संतुलन की ओर इशारा करता है। NSS कहता है कि 'अमेरिकी वर्चस्व अब संभव नहीं', इसलिए वॉशिंगटन अब रीजनल चैंपियंस को बढ़ावा देगा और यूरोप को 'मेक यूरोप ग्रेट अगेन' की ओर ले जाएगा।


