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बिहार विधानसभा की नई तस्वीर: PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च रिपोर्ट पढ़कर चौंक जाएंगे

बिहार विधानसभा 2025 में 40% नए विधायकों के पास कॉलेज की डिग्री नहीं है। PRS रिपोर्ट के अनुसार, 55+ आयु वर्ग के विधायक बढ़कर 46% हुए। शिक्षा पर अनुभव भारी, आखिर क्या कहता है यह आंकड़ा?

बिहार विधानसभा की नई तस्वीर: PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च रिपोर्ट पढ़कर चौंक जाएंगे
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । बिहार की नई विधानसभा में क्या सचमुच कम पढ़ी-लिखी जनता का राज है? बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बाद सदन की जो नई तस्वीर सामने आई है, वह शिक्षा और महिला प्रतिनिधित्व के मामले में कई सवाल खड़े करती है। 40 प्रतिशत से अधिक नए विधायकों के पास कॉलेज की डिग्री नहीं है, जबकि महिला विधायकों का प्रतिनिधित्व केवल 12 प्रतिशत तक ही सीमित रहा है।

यह आंकड़ा न सिर्फ सदन के शैक्षिक स्तर को दर्शाता है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि क्या जनता को अपने प्रतिनिधि के रूप में 'डिग्री' से ज्यादा 'जमीन से जुड़ाव' पसंद है। बिहार सदन 40% विधायक 'कम शिक्षित', फिर भी जीत का स्ट्राइक रेट 85%? ग्राउंड रिपोर्ट जनता ने डिग्री को क्यों किया दरकिनार?

बिहार की राजनीति हमेशा से जटिल और दिलचस्प रही है। इस बार के चुनाव परिणाम ने एक नई बहस को जन्म दिया है। जहां एक ओर देश 'स्किल्ड इंडिया' और 'डिजिटल इंडिया' की बात कर रहा है, वहीं बिहार की नई विधानसभा में उच्चतर माध्यमिक स्तर 12वीं तक की शिक्षा रखने वाले विधायकों का अनुपात 38 प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया है। सीधे शब्दों में कहें तो, लगभग 40 प्रतिशत विधायक ऐसे हैं जिनके पास कॉलेज की डिग्री नहीं है।

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि स्नातक Graduate विधायकों की संख्या पिछली विधानसभा के 40 प्रतिशत से घटकर 32 प्रतिशत रह गई है। क्या यह सिर्फ एक आकस्मिक गिरावट है या यह बिहार की ग्रामीण राजनीति की एक गहरी सच्चाई है? इस सवाल का जवाब सत्ताधारी एनडीए NDA के शानदार प्रदर्शन में छिपा है, जिसने 85 प्रतिशत के स्ट्राइक रेट से जीत हासिल कर सत्ता बरकरार रखी है।

आखिर क्या वजह है कि मतदाताओं ने डिग्रीधारी उम्मीदवारों की जगह कम पढ़े-लिखे, लेकिन अनुभवी नेताओं पर भरोसा जताया? 12% महिला प्रतिनिधित्व आधी आबादी को अब भी इंतजार शिक्षा के साथ-साथ, महिला प्रतिनिधित्व का मुद्दा भी महत्वपूर्ण है। 243 सदस्यीय विधानसभा में केवल 29 महिला विधायक चुनी गई हैं, जो कुल संख्या का मात्र 12 प्रतिशत है।

जबकि पिछली विधानसभा में यह संख्या 26 थी। लेकिन, यह वृद्धि ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। यह आंकड़ा तब और भी चौंकाने वाला हो जाता है जब हम महिला विधायकों की शैक्षिक पृष्ठभूमि को देखते हैं। चुनी गई 29 महिलाओं में से लगभग आधी 15 विधायकों के पास कॉलेज की डिग्री नहीं है। यह एक द्विपक्षीय चुनौती प्रस्तुत करता है कम संख्या महिलाओं को राजनीति में आने के लिए पर्याप्त अवसर नहीं मिल रहे हैं।

शैक्षिक अंतर जो महिलाएं चुनकर आ रही हैं, उनमें से एक बड़ा हिस्सा शैक्षिक रूप से पिछड़ा है। हालांकि, एक सकारात्मक पहलू भी है। इन 29 महिला विधायकों में से 13 की उम्र 25 से 39 साल के बीच है। यह दिखाता है कि बिहार की युवा महिलाएं अब राजनीति में सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं, जो भविष्य के लिए एक उज्ज्वल संकेत है।

55+ उम्र वाले विधायक बढ़े

अगर हम विधायकों की आयु वर्ग को देखें, तो यह भी एक दिलचस्प बदलाव दिखाता है। साल 2015 में 55 वर्ष या उससे अधिक आयु के विधायकों का प्रतिशत 34% था। साल 2020 में यह बढ़कर 40% हो गया। 2025 में यह संख्या और बढ़कर 46% तक पहुंच गई है। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि बिहार की राजनीति में अनुभवी, बुजुर्ग नेताओं का दबदबा बढ़ रहा है। शायद मतदाता अब नए चेहरों और उनकी 'डिग्री' की अपेक्षा 'पुराने खिलाड़ी' के अनुभव और विश्वसनीयता पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं।

विधानसभा वर्ष 55+ आयु के विधायक % स्नातक विधायक %
2015 34% N/A
2020 40% 40%
2025 46% 32%


अब सवाल यह है कि सदन में शैक्षिक स्तर का गिरना और बुजुर्ग नेताओं का बढ़ना, क्या बिहार के विधायी कामकाज की गुणवत्ता को प्रभावित करेगा?

'डिग्री' बनाम 'दखल' बिहार की राजनीति का नया समीकरण

राजनीति में 'अच्छी शिक्षा' का महत्व निर्विवाद है, लेकिन भारत जैसे देश में जहां चुनावी मैदान में उतरने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है, मतदाता की प्राथमिकताएं अक्सर बदल जाती हैं।

उच्च शिक्षा: स्नातकोत्तर डिग्री रखने वाले विधायकों की संख्या 2020 में 23 प्रतिशत से बढ़कर 28 प्रतिशत ज़रूर हुई है, लेकिन यह संख्या उन 40% विधायकों के सामने बहुत कम है जिनके पास कॉलेज की डिग्री नहीं है।

जनता का संदेश: बिहार के मतदाता शायद यह संदेश दे रहे हैं कि उनके लिए विधायक का "असरदार होना", "जमीन से जुड़ाव", और "स्थानीय मुद्दों को हल करने की क्षमता" कॉलेज की डिग्री से कहीं ज्यादा मायने रखती है।

पार्टी की रणनीति: राजनीतिक दलों ने भी ऐसे उम्मीदवारों पर दांव लगाया, जिनका अपने क्षेत्र में मजबूत दखल है, भले ही उनकी शैक्षणिक योग्यता कम हो। एनडीए के 85% स्ट्राइक रेट की सफलता इस बात का प्रमाण है।

युवा महिला शक्ति: महिला विधायकों की कम संख्या निराशाजनक है, लेकिन युवा महिला नेताओं 25-39 आयु वर्ग की बढ़ती भागीदारी एक मजबूत संकेत है कि आने वाले समय में यह आंकड़ा सुधरेगा। क्या जरूरी है विधायकों के लिए न्यूनतम शिक्षा?

यह रिपोर्ट किसी भी विधायक के काम करने की क्षमता पर सवाल नहीं उठाती, लेकिन यह बिहार के विधायी परिदृश्य की एक स्पष्ट तस्वीर पेश करती है। यह डेटा नीति निर्माताओं, राजनीतिक दलों और सिविल सोसाइटी के लिए एक वेक-अप कॉल है।

यह जरूरी है कि राजनीतिक दल न केवल महिलाओं के लिए अधिक टिकट सुनिश्चित करें, बल्कि शिक्षित और सक्षम उम्मीदवारों को भी चुनाव लड़ने के लिए प्रोत्साहित करें। वहीं, मतदाताओं को भी सिर्फ भावनात्मक या जातीय समीकरणों पर नहीं, बल्कि उम्मीदवार की योग्यता और दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।

बिहार ने साबित कर दिया है कि सत्ता की राह में 'डिग्री' सिर्फ एक कागज़ का टुकड़ा है, असली ताकत तो जनता का भरोसा है। अब देखना यह है कि ये "कम शिक्षित" विधायक सदन में बिहार के विकास की कैसी कहानी लिखते हैं।

Bihar politics 2025 | Education Vs Experience | Bihar Verdict | Grassroots Leadership


Ajit Kumar Pandey

Ajit Kumar Pandey

पत्रकारिता की शुरुआत 1994 में हिंदुस्तान अख़बार से करने वाले अजीत कुमार पांडेय का मीडिया सफर तीन दशकों से भी लंबा रहा है। उन्होंने दैनिक जागरण, अमर उजाला, आज तक, ईटीवी, नवभारत टाइम्स, दैनिक हिंट और दैनिक जनवाणी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में फील्ड रिपोर्टिंग से लेकर डेस्क तक अपनी सेवाएं दीं। समाचार लेखन, विश्लेषण और ग्राउंड रिपोर्टिंग में निपुणता के साथ-साथ उन्होंने समय के साथ डिजिटल और सोशल मीडिया को भी बख़ूबी अपनाया। न्यू मीडिया की तकनीकों को नजदीक से समझते हुए उन्होंने खुद को डिजिटल पत्रकारिता की मुख्यधारा में स्थापित किया। करीब 31 वर्षों के अनुभव के साथ अजीत कुमार पांडेय आज भी पत्रकारिता में सक्रिय हैं और जनहित, राष्ट्रहित और समाज की सच्ची आवाज़ बनने के मिशन पर अग्रसर हैं।

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