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बिहार चुनाव 2025: राजद का वोट शेयर ज़्यादा, फिर भी सीटें कम क्यों?

बिहार चुनाव 2025 में राजद RJD को 23% वोट शेयर मिला, पर सीटें 25 ही रहीं। महागठबंधन की प्रचंड हार, और NDA के वोट शेयर ने कैसे RJD के ज़्यादा वोटों को बेकार कर दिया।

बिहार चुनाव 2025: राजद का वोट शेयर ज़्यादा, फिर भी सीटें कम क्यों?
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क 2025 बिहार चुनाव के नतीजे सबके सामने हैं एनडीए को बहुमत मिल चुकी है। लेकिन, सोशल मीडिया पर एक सवाल गूंज रहा है – राजद RJD को 23 परसेंट वोट मिलने पर भी सिर्फ़ 25 सीटें क्यों? वहीं, 20.8% वोट पाकर भाजपा BJP ने इससे कई गुना ज़्यादा सीटें कैसे जीत लीं? यह रिपोर्ट वोट प्रतिशत और सीट संख्या के बीच के उलझे हुए सवाल को समझाएगा, जो चुनाव जीतने की असल रणनीति को खोल कर रख देगा। बिहार चुनाव का वो 'अबूझ' गणित जिसने सबको चौंका दिया वोट ज़्यादा, सीटें कम?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणाम ने न केवल राजनीतिक पंडितों को, बल्कि आम मतदाता को भी हैरान कर दिया है। एक तरफ राष्ट्रीय जनता दल RJD है, जिसने 23% का सबसे बड़ा वोट शेयर हासिल किया। दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी BJP और जनता दल यूनाइटेड JDU का गठबंधन NDA है, जिसे भले ही व्यक्तिगत रूप से RJD से कम वोट मिले, लेकिन उसने सदन में अपनी सत्ता का परचम लहरा दिया। सवाल सीधा और मार्मिक है आख़िरकार, जिस पार्टी को सबसे ज़्यादा लोगों ने वोट दिया, वह विपक्ष में क्यों सिमट गई? क्या यह सिर्फ सीटों की गिनती का खेल है, या इसके पीछे कोई गहरा 'चुनावी अंकगणित' छिपा है, जिसे समझना हर नागरिक के लिए ज़रूरी है?

RJD का 23% वोट शेयर 'बड़ा' तो है, पर 'फैला हुआ' क्यों?

चुनाव आयोग के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 2025 के बिहार चुनाव में RJD को 23% वोट शेयर मिला, जो किसी भी दल के लिए सबसे ज़्यादा था। इसके मुक़ाबले, BJP को 20.8% और JDU को 19.25% वोट मिले। यहां एक बड़ा फ़र्क सीटों की संख्या में आता है। RJD भले ही वोट शेयर में नंबर वन रही, लेकिन उसकी सीटें महज़ 25 पर ठहर गईं, जबकि BJP और JDU ने मिलकर इससे कई गुना ज़्यादा सीटें जीतीं।

वोट शेयर की 'कुल' कहानी

RJD ने अपने 143 उम्मीदवारों के बूते यह 23% वोट जुटाया। NDA की 'औसत' कहानी BJP और JDU दोनों ने महज़ 101-101 सीटों पर ही चुनाव लड़ा। यानी, RJD ने BJP और JDU से 42 अधिक सीटों पर अपनी वोट-पूंजी लगाई। इसका सीधा मतलब यह है कि RJD का वोट शेयर ज़्यादा सीटों पर 'बंट' गया, जबकि NDA ने कम सीटों पर ज़्यादा वोटों को 'कंसोलिडेट' किया। चुनाव जीतने की यह रणनीति ही असल में गेम चेंजर साबित हुई।

एंट्री बैरियर सिर्फ 1 वोट का नियम: चुनाव जीतने के लिए आपको कितने वोटों की ज़रूरत होती है? जवाब है सिर्फ़ एक वोट।

यह सबसे अहम बिंदु है जो RJD के खेल को बिगाड़ता है। इसे एक उदाहरण से समझिए

उम्मीदवार प्राप्त वोट परिणाम सीट मिली?
RJD विजेता 50001 वोट जीत का मार्जिन 25000 हां
BJP उपविजेता —25001 वोट - नहीं


इस उदाहरण में, RJD के उम्मीदवार ने 25000 वोटों के भारी अंतर से जीत हासिल की। RJD के 25000 'अतिरिक्त' वोट उसके कुल वोट शेयर में तो जुड़ गए, लेकिन सीट वाले खाते में उसे सिर्फ़ 1 सीट ही मिली। अब इसके विपरीत, अगर भाजपा ने इसी 25000 वोटों के अंतर को 25 अलग-अलग सीटों पर 1-1 वोट के मार्जिन से जीत में बदल दिया होता, तो उसके खाते में 25 सीटें जुड़ जातीं।

RJD ने जहां 'बड़े मार्जिन' से जीत हासिल की, वहीं NDA ने 'कम मार्जिन' वाली, लेकिन ज़्यादा सीटें जीतकर 'वोटों को सीटों में बदलने' का खेल जीत लिया। याद रखें लोकतंत्र में एक सीट एक ही गिनती है, चाहे जीत 1 वोट से हो या 50000 वोटों से। RJD के ज़्यादा वोट शेयर का बड़ा हिस्सा उन सीटों पर गया, जहां उसकी जीत का मार्जिन पहले ही बहुत बड़ा था।

महागठबंधन की 'एकल' शक्ति बनाम NDA का 'सामूहिक' प्रदर्शन

एक और महत्त्वपूर्ण कारक गठबंधन की प्रकृति है। महागठबंधन RJD के नेतृत्व में महागठबंधन में RJD ही सबसे बड़े वोट बैंक वाली पार्टी रही। RJD 23% कांग्रेस 8.71%, CPIMLL 2.84% यहां साफ़ दिखता है कि RJD के बाद कांग्रेस का प्रदर्शन भी ख़ास मज़बूत नहीं रहा, और छोटे दलों का वोट शेयर काफ़ी कम है।

महागठबंधन की पूरी चुनावी मशीनरी मुख्य रूप से RJD के 23% वोटों पर ही टिकी रही। BJP और JDU NDA में, ताकत का वितरण ज़्यादा संतुलित था। BJP 20.08%, JDU 19.25%, LJPRV रामविलास 4.97% NDA के प्रमुख दल लगभग बराबर की ताकत रखते थे। यदि आप NDA के तीन बड़े दलों BJP, JDU, LJPRV के वोट शेयर को जोड़ते हैं, तो यह लगभग 45% के क़रीब पहुंच जाता है। इसके विपरीत, महागठबंधन के तीन सबसे बड़े दलों का संयुक्त वोट शेयर क़रीब 35% ही रहता है।

NDA न केवल ज़्यादा सीटों पर एक मज़बूत उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब रहा, बल्कि उन्होंने अपने सहयोगी दलों के वोटों को भी प्रभावी ढंग से एक साथ मिलाया। RJD का 23% वोट शेयर भले ही अकेले सबसे ज़्यादा हो, लेकिन NDA के 45% सामूहिक वोट शेयर के सामने वह कहीं ज़्यादा कमज़ोर साबित हुआ।

चुनाव जीतना 'कुल वोटों' का नहीं, 'सही जगह पर वोटों' का खेल है। 2025 के बिहार चुनाव का यह गणित स्पष्ट करता है कि चुनावी जीत सिर्फ़ सबसे ज़्यादा वोट शेयर हासिल करने पर निर्भर नहीं करती, बल्कि यह इस बात पर निर्भर करती है कि आप अपने वोटों को कितनी रणनीतिक तरीके से सीटों में बदल पाते हैं।

RJD ने अपनी 143 सीटों पर बंपर वोट जुटाए, लेकिन उसकी जीत का मार्जिन इतना बड़ा रहा कि उसके हज़ारों वोट व्यर्थ हो गए। वहीं, BJP और JDU ने कम सीटों पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित किया, सहयोगियों के साथ मिलकर एक बड़ा और मज़बूत वोट ब्लॉक बनाया, और अपनी जीत के मार्जिन को कम रखते हुए ज़्यादा से ज़्यादा सीटें अपनी झोली में डालीं।

चुनावी रणनीतिकारों के लिए यह एक क्लासिक केस स्टडी है – 'वोट शेयर' Vote Share और 'सीट शेयर' Seat Share के बीच का अंतर। RJD ने वोट शेयर का युद्ध जीता, लेकिन NDA ने सीटों का मैदान फतेह कर लिया। बिहार ने एक बार फिर साबित कर दिया कि भारतीय राजनीति में "जीता वही, जो अपनी जीत के वोटों को बचा लेता है।"

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Ajit Kumar Pandey

Ajit Kumar Pandey

पत्रकारिता की शुरुआत 1994 में हिंदुस्तान अख़बार से करने वाले अजीत कुमार पांडेय का मीडिया सफर तीन दशकों से भी लंबा रहा है। उन्होंने दैनिक जागरण, अमर उजाला, आज तक, ईटीवी, नवभारत टाइम्स, दैनिक हिंट और दैनिक जनवाणी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में फील्ड रिपोर्टिंग से लेकर डेस्क तक अपनी सेवाएं दीं। समाचार लेखन, विश्लेषण और ग्राउंड रिपोर्टिंग में निपुणता के साथ-साथ उन्होंने समय के साथ डिजिटल और सोशल मीडिया को भी बख़ूबी अपनाया। न्यू मीडिया की तकनीकों को नजदीक से समझते हुए उन्होंने खुद को डिजिटल पत्रकारिता की मुख्यधारा में स्थापित किया। करीब 31 वर्षों के अनुभव के साथ अजीत कुमार पांडेय आज भी पत्रकारिता में सक्रिय हैं और जनहित, राष्ट्रहित और समाज की सच्ची आवाज़ बनने के मिशन पर अग्रसर हैं।

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