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170 साल पुरानी वो RUM बिना विज्ञापन कैसे बनी भारत की बादशाह?

170 साल पुरानी 'ओल्ड मोंक' रम, जो भारत की सबसे प्रिय डार्क रम है, ने बिना किसी विज्ञापन के 2166 करोड़ का रेवेन्यू हासिल किया है। क्या है 'ओल्ड मोंक' वनीला स्वाद और ग्राहकों की अटूट वफादारी?

170 साल पुरानी वो RUM बिना विज्ञापन कैसे बनी भारत की बादशाह?
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । सर्दियों की दस्तक के साथ ही एक 170 साल पुरानी भारतीय डार्क रम की डिमांड आसमान छूने लगती है। हम बात कर रहे हैं 'ओल्ड मोंक' Old Monk की, जिसने बिना किसी विज्ञापन के, सिर्फ 'वर्ड ऑफ माउथ' के दम पर देश के कोने-कोने में अपनी बादशाहत कायम रखी है। यह सिर्फ एक ड्रिंक नहीं, बल्कि एक इमोशन है। आइए जानते हैं क्या है इस आइकॉनिक ब्रांड की कहानी, कमाई और मार्केट में कैसे बना इसका दबदबा।

जैसे ही पारा गिरता है, देश का एक बड़ा वर्ग व्हिस्की और दूसरे स्पिरिट्स से हटकर डार्क रम Dark Rum की ओर मुड़ जाता है। इस बदलती हवा में एक नाम सदियों से अटल खड़ा है— ओल्ड मोंक। यह सिर्फ एक ब्रांड नहीं है, यह भारत के सबसे पुराने और सबसे प्रिय आईएमएफएल IMFL - Indian-Made Foreign Liquor ब्रांड्स में से एक है, जिसकी यात्रा 1855 में हिमाचल प्रदेश के कसौली में एक छोटी सी ब्रुअरी से शुरू हुई थी।

एडवर्ड डायर द्वारा शुरू की गई इस ब्रुअरी ने बाद में मोहन मीकिन प्राइवेट लिमिटेड का रूप लिया, जो आज ओल्ड मोंक की जनक है। नाम के पीछे का गहरा रहस्य क्या आप जानते हैं 'ओल्ड मोंक' नाम कैसे पड़ा? कहा जाता है कि मोहन मीकिन के पूर्व प्रबंध निदेशक वेद रतन मोहन ने इस रम को 1960 के दशक में लॉन्च किया था। उनके भाई, कर्नल वेद मोहन, बेनेडिक्टिन मोंक्स Benedictine Monks के शांत, तपस्वी जीवन और पहाड़ों में उनके द्वारा बनाए गए पेय पदार्थों से बहुत प्रेरित थे। यह शांति, सादगी और गुणवत्ता का मिश्रण ही था जिसने इस रम को 'मोंक' नाम दिया।

ओल्ड मोंक से पहले, कंपनी हरक्यूलिस रम बनाती थी, जो विशेष रूप से सशस्त्र बलों के लिए थी। लेकिन, ओल्ड मोंक अपने अनूठे, विशिष्ट वनीला Vanilla फ्लेवर के साथ आई और जल्द ही यह दुनिया की अग्रणी डार्क रम में से एक बन गई।

विज्ञापन नहीं, वफादारी है इसका प्रचार

आज के हाई-फाई मार्केटिंग वाले दौर में, जहां हर ब्रांड करोड़ों खर्च करता है, ओल्ड मोंक की सफलता का फॉर्मूला चौंकाने वाला है। इस रम का आज तक कोई विज्ञापन नहीं आया है यह ब्रांड अपनी लोकप्रियता और जबरदस्त मांग के लिए पूरी तरह से 'वर्ड ऑफ माउथ' Word of Mouth यानी ग्राहकों की वफादारी और जुबानी प्रचार पर निर्भर करता है। यह एक ऐसा अनोखा मामला है जो साबित करता है कि अगर प्रोडक्ट में दम हो, तो प्रचार की जरूरत नहीं पड़ती।

विशेषताएं जो इसे खास बनाती हैं

भारतीय जड़ें: यह पूरी तरह से भारतीय डार्क रम है, जिसका प्रोडक्शन गाजियाबाद उत्तर प्रदेश में होता है और रजिस्ट्रेशन सोलन हिमाचल प्रदेश में है।

स्वाद: इसका विशिष्ट, हल्का वनीला स्वाद इसे एक पहचान देता है।

क्वालिटी का प्रमाण: 1982 से इसे मोंडे सेलेक्शन्स Monde Selections में गोल्ड मेडल से सम्मानित किया जाता रहा है।

RUM

मार्केट में वापसी और कंपीटिशन

एक वक्त था जब ओल्ड मोंक भारत में सबसे ज़्यादा बिकने वाली डार्क रम थी। हालांकि, 2013 में मैकडॉवेल्स नंबर 1 सेलिब्रेशन रम McDowell's No. 1 Celebration Rum ने इससे यह ताज छीन लिया था। लेकिन इस पुराने 'ओल्ड मोंक' ने हार नहीं मानी।

2024 की दहाड़: ईटी ब्रांडइक्विटी की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में ओल्ड मोंक ने कई करोड़ केस बेचे। यह आंकड़ा मैकडॉवेल्स सेलिब्रेशन जैसी प्रतिस्पर्धियों से कहीं बेहतर था।

दबदबा बरकरार: इम्पैक्ट इंटरनेशनल की: 2008 की “रिटेल प्राइस पर टॉप 100 ब्रांड्स” की सूची में ओल्ड मोंक को भारतीय स्पिरिट ब्रांडों में 5वां स्थान मिला था, जिसका खुदरा मूल्य उस समय 240 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।

इस पुनरुत्थान का श्रेय कंपनी की बेहतर मैन्युफैक्चरिंग, थर्ड-पार्टी डिस्ट्रीब्यूशन पर कंट्रोल वापस पाने और सबसे महत्वपूर्ण, मजबूत कंज्यूमर डिमांड को दिया जाता है। लोग आज भी उस पुरानी, भरोसेमंद क्वालिटी को तरजीह देते हैं।

करोड़ों की कमाई: मोहन मीकिन का बढ़ता रेवेन्यू

अगर आप सोचते हैं कि बिना विज्ञापन के कंपनी की कमाई कम होगी, तो आप गलत हैं। ओल्ड मोंक की पेरेंट कंपनी मोहन मीकिन लिमिटेड का फाइनेंशियल प्रदर्शन लगातार मजबूत हो रहा है। वित्त वर्ष 2025 का लेखा-जोखा कुल रेवेन्यू खासा बढ़ोतरी और करोड़ो की नेट प्रॉफिट 21% से ज़्यादा की बढ़ोतरी प्रॉफिट वित्त वर्ष 2018 और वित्त वर्ष 2024 के बीच कंपनी की सेल्स तिगुनी होकर 2166 करोड़ रुपए हो गई और मुनाफा बढ़कर 103 करोड़ रुपए हो गया।

यह ग्रोथ इस बात का प्रमाण है कि उपभोक्ता इस ब्रांड के प्रति कितने वफादार हैं और यह हर साल कितनी तेजी से नए ग्राहकों को जोड़ रहा है।

सर्दियों का मौसम: सिर्फ मौसम में ठंडक नहीं लाता, बल्कि ओल्ड मोंक की बोतलों में भी गर्माहट भर देता है।

170 साल पहले शुरू हुई यह यात्रा आज भी लाखों भारतीयों के लिए क्वालिटी, परंपरा और नॉस्टैल्जिया का प्रतीक बनी हुई है। इसका 'नो-एडवर्टाइजमेंट' फॉर्मूला आज के ब्रांड्स के लिए एक बड़ा सबक है— क्वालिटी ही सबसे बड़ा मार्केटिंग टूल है।

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Ajit Kumar Pandey

Ajit Kumar Pandey

पत्रकारिता की शुरुआत 1994 में हिंदुस्तान अख़बार से करने वाले अजीत कुमार पांडेय का मीडिया सफर तीन दशकों से भी लंबा रहा है। उन्होंने दैनिक जागरण, अमर उजाला, आज तक, ईटीवी, नवभारत टाइम्स, दैनिक हिंट और दैनिक जनवाणी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में फील्ड रिपोर्टिंग से लेकर डेस्क तक अपनी सेवाएं दीं। समाचार लेखन, विश्लेषण और ग्राउंड रिपोर्टिंग में निपुणता के साथ-साथ उन्होंने समय के साथ डिजिटल और सोशल मीडिया को भी बख़ूबी अपनाया। न्यू मीडिया की तकनीकों को नजदीक से समझते हुए उन्होंने खुद को डिजिटल पत्रकारिता की मुख्यधारा में स्थापित किया। करीब 31 वर्षों के अनुभव के साथ अजीत कुमार पांडेय आज भी पत्रकारिता में सक्रिय हैं और जनहित, राष्ट्रहित और समाज की सच्ची आवाज़ बनने के मिशन पर अग्रसर हैं।

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