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हार्मोन असंतुलन और डिप्रेशन: मूड बदलने के आयुर्वेदिक उपाय

हार्मोन का असंतुलन अक्सर डिप्रेशन और खराब मूड का कारण बन सकता है। आयुर्वेद इस स्थिति को वात, पित्त और कफ दोषों में असंतुलन मानता है।

YBN Desk
हार्मोन असंतुलन और डिप्रेशन: मूड बदलने के आयुर्वेदिक उपाय
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नई दिल्ली। हार्मोन का असंतुलन अक्सर डिप्रेशन और खराब मूड का कारण बन सकता है। आयुर्वेद इस स्थिति को वात, पित्त और कफ दोषों में असंतुलन मानता है। ये उपाय न केवल हार्मोन को संतुलित करते हैं, बल्कि डिप्रेशन के लक्षणों को कम करके आपका मूड बदल सकते हैं। क्या आप अश्वगंधा या ब्राह्मी के सेवन की विधि के बारे में जानना चाहेंगे? हार्मोन असंतुलन की वजह से जब मन हमेशा भारी लगे, ऊर्जा खत्म हो जाए और मूड स्विंग होता रहे, तो इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। आयुर्वेद इसे सिर्फ मानसिक समस्या नहीं मानता, बल्कि यह शरीर और मन दोनों का विकार है, खासकर थायरॉयड, कोर्टिसोल और न्यूरो-हार्मोन पर असर पड़ता है।

नियमित दिनचर्या:

सूर्योदय से पहले उठना और समय पर सोना (अच्छी 6-7 घंटे की नींद लेना) हार्मोनल लय को संतुलित करता है। जब थायरॉयड धीमा हो, तो शरीर सुस्त महसूस होता है और मन भी सुस्त हो जाता है। कोर्टिसोल बढ़ने से तनाव, बेचैनी और डर बढ़ते हैं, जो धीरे-धीरे डिप्रेशन जैसा प्रभाव डालते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, यह मुख्य रूप से वात और तमोगुण के असंतुलन से होता है। वात बढ़ने पर फोकस कम होता है, नींद टूटती है और मूड अस्थिर होता है। तमोगुण बढ़ने पर मन भारी और थका हुआ महसूस होता है।

योग और प्राणायाम:

अनुलोम-विलोम और ध्यान (मेडिटेशन) मानसिक शांति देते हैं, जो हार्मोन को नियंत्रित करने में सहायक है।आयुर्वेद में ऐसी स्थिति में कई जड़ी-बूटियां मदद करती हैं। अश्वगंधा तनाव कम करती है और कोर्टिसोल संतुलित करती है, नींद बेहतर बनाती है। शंखपुष्पी मस्तिष्क को शांत करती है और मूड स्थिर करती है। जटामांसी गहरी नींद और मानसिक स्थिरता देती है। ब्राह्मी फोकस बढ़ाती है और मन हल्का करती है। कुमारी (एलोवेरा) थायरॉयड संतुलन में सहायक होती है। थायरॉयड असंतुलन को आयुर्वेद में अग्नि और धातु-पोषण से जोड़ा गया है। जब अग्नि कमजोर हो, मेटाबॉलिज्म धीमा होता है, मन भारी होता है और थकान बढ़ती है।

आहार:

फाइबर युक्त अनाज, भीगे हुए बादाम-अखरोट और ताज़े फल-सब्जियाँ खाएं। कैफीन और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों से बचें।योग और प्राणायाम भी हार्मोन संतुलन में मदद करते हैं। अनुलोम-विलोम, भ्रामरी, उज्जायी प्राणायाम, सूर्य नमस्कार और शशांकासन नाड़ियों को शांत करके मूड बेहतर बनाते हैं। आहार में हल्का, सुपाच्य भोजन, तिल, बादाम, घी, गर्म दूध, हल्दी, दालचीनी और गुड़ शामिल करना लाभकारी होता है। कैफीन की अधिकता से बचें। दिनचर्या में सुबह सूरज की रोशनी, 20 मिनट की वॉक, नियमित नींद और स्क्रीन टाइम कम करना चाहिए। तिल, ब्राह्मी और अंजनाम तेल से सिर और पैरों की मालिश मन शांत करने में मदद करती है।

अश्वगंधा और ब्राह्मी:

ये एडेप्टोजेनिक जड़ी-बूटियाँ तनाव हार्मोन कॉर्टिसोल को कम करती हैं और शांति लाती हैं। रोज़ाना इनका सेवन करें।सरल घरेलू उपाय जैसे दूध में अश्वगंधा पाउडर, गर्म पानी में घी की बूंदें या शहद में दालचीनी भी फायदेमंद हैं। रात में जटामांसी का काढ़ा पीना, मंत्र जप, धीमी संगीत थेरेपी और डायरी लिखना मन को स्थिर करता है। अगर उदासी, ऊर्जा की कमी या आत्म-नुकसान के विचार हों, तो तुरंत विशेषज्ञ से सलाह लें। आयुर्वेद हार्मोन असंतुलन और डिप्रेशन को जड़ से सुधारता है, पाचन सुधारता है, नाड़ियां शांत करता है और मन मजबूत बनाता है।


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